CG News: मोतियाबिंद ऑपरेशन करने वाले अस्पतालों के पेमेंट का सिस्टम बदला, अब ऐसे होगा भुगतान
CG News: राष्ट्रीय अंधत्व एवं अल्प दृष्टि नियंत्रण कार्यक्रम के तहत मोतियाबिंद ऑपरेशन के लिए अनुबंधित एनजीओ व अस्पतालों के पेमेंट का सिस्टम बदल दिया गया है।
CG News: राष्ट्रीय अंधत्व एवं अल्प दृष्टि नियंत्रण कार्यक्रम के तहत मोतियाबिंद ऑपरेशन के लिए अनुबंधित एनजीओ व अस्पतालों के पेमेंट का सिस्टम बदल दिया गया है। अब जिलों से भुगतान किया जाएगा। पहले हैल्थ डायरेक्टोरेट से पेमेंट किया जा रहा था। एनजीओ का पहले जिलों से ही एमओयू होता था, लेकिन कुछ दिनों पहले राज्य से एमओयू करने का आदेश जारी किया गया था। तकनीकी समस्या को देखते हुए पूर्ववत जिलों से अनुबंध का आदेश जारी कर दिया गया है।
एनजीओ से एमओयू में निजी अस्पतालों की ठीक से मॉनीटरिंग की कमी है। पहले पत्रिका ने इस मुद्दे को लेकर समाचार प्रकाशित किया था। इसके बाद स्वास्थ्य विभाग ने मनमानी करने वाले एक निजी अस्पताल का एमओयू भी रद्द कर दिया था। रायपुर जिले में मरीजों के मोतियाबिंद ऑपरेशन के लिए 6 निजी अस्पतालों के साथ एमओयू किया गया है। हालांकि यहां एम्स, आंबेडकर अस्पताल व जिला अस्पताल में नेत्र रोग का बड़ा सेटअप काम कर रहा है।
आंबेडकर अस्पताल का नेत्र रोग विभाग तो सेंटर ऑफ एक्सीलेंस भी है। जिन अस्पतालों में मरीजों की आंखों की सर्जरी के लिए अनुबंध किया गया है, उसकी मॉनीटरिंग करने का कोई सिस्टम ही नहीं है। मरीजों के ऑपरेशन के बाद कम से कम तीन माह तक फॉलोअप में आना है, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। इसके कारण ऑपरेशन के बाद भी कुछ मरीजों की आंखों की रोशनी जस की तस रहती है। इससे अनुबंध पर कई सवाल उठ रहे हैं।
सरकारी को 1000 और निजी को दिया जाता है 2000 रुपए
राष्ट्रीय अंधत्व नियंत्रण कार्यक्रम के तहत मोतियाबिंद सर्जरी सरकारी व निजी अस्पतालों में की जा रही है। सरकारी अस्पताल को एक मरीज की सर्जरी के एवज में 1000 रुपए भुगतान किया जाता है। वहीं, निजी अस्पतालों को 2 हजार रुपए प्रति ऑपरेशन दिया जा रहा है। इसमें ऑपरेशन से लेकर दवा, चश्मा, खाना व आने-जाने का खर्च शामिल है।
ऑपरेशन के अगले दिन पट्टी खोलकर आंख की रोशनी की जांच की जाती है। इसके बाद चश्मे का नंबर भी दिया जाता है। कुछ अनुबंधित निजी अस्पताल प्रोटोकॉल का बिल्कुल पालन नहीं कर रहे हैं। पत्रिका की पड़ताल में पता चला है कि मरीजों की पट्टी खोलने के बाद दोबारा रोशनी जांच के लिए नहीं बुलाया जाता। जबकि रोशनी की जांच तीन माह तक नियमित रूप से की जानी चाहिए।
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