khelgarhia Scam: ऐसे मिटाए गए सबूत… खेलगढ़िया की पिछली जांच से पहले ही 8 गवाहों का तबादला, 13 का बयान नहीं
khelgarhia Scam: कलेक्टर की जांच के डेढ़ साल बाद दोबारा सैकड़ों गवाहों केे बयान करवाने का मतलब तो यही निकलता है कि इस बार भी मामला दबाने की कोशिशें जारी हैं।
khelgarhia Scam: 5 साल पुराने खेलगढ़िया घोटाले पर गरियाबंद कलेक्टर ने डेढ़ साल पहले जांच बिठाई थी। मैनपुर ब्लॉक के 39 संकुल समन्वयक इसमें गवाह थे। पूछताछ के लिए बुलाया तो पता चला कि इनमें से 8 का पहले ही तबादला हो चुका है। वहीं, 13 समन्वयक बयान देने नहीं आए। बाकियों ने तत्कालीन डीएमसी श्याम चंद्राकर पर खेल सामग्रियों के बदले स्मार्ट टीवी खरीदने के लिए मौखिक दबाव बनाने की बात कही।
khelgarhia Scam: मामला दबाने की कोशिशें जारी
इनके अलावा प्राइमरी और मिडिल स्कूल के प्रधानपाठकों को मिलाकर तब कुल 327 लोगोें के बयान हुए थे। कलेक्टर ने इसी आधार पर चंद्राकर को सस्पेंड कर फाइल आगे की कार्रवाई के लिए डीपीआई को भेजी। 3 माह बाद डीपीआई ने आदेश निकालकर भ्रष्टाचार के आरोपी को बहाल करते हुए बिना योग्यता ही सहायक सांख्यिकी अधिकारी बना दिया।
इधर, जांच भी जारी रहने की बात कही। इसके लिए 2 अधिकारी नियुक्त किए, जिन्हें केवल जांच आदेश का कागज थमाया। वह प्रतिवेदन नहीं दिया, जिसके आधार पर जांच आगे बढ़ानी थी। फरवरी में पत्रिका में खुलासे के बाद अफसरों के हाथ-पांव फूले। मामले में जांच प्रस्तुतकर्ता अधिकारी बनाए गए डीईओ रमेश निषाद ने विभाग को पत्र लिखकर खुद को केस से अलग करने की सिफारिश की।
जांच अधिकारी रहे संभागीय शिक्षा संयुक्त संचालक को भी डीपीआई ने मामले से अलग करते हुए 2 बिलकुल नए जांच अधिकारी नियुक्त किए हैं। कलेक्टर की जांच के डेढ़ साल बाद दोबारा सैकड़ों गवाहों केे बयान करवाने का मतलब तो यही निकलता है कि इस बार भी मामला दबाने की कोशिशें जारी हैं। संभव है कि इस बार भी ज्यादातर गवाहों का तबादला हो चुका हो।
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अफसरों ने जांच दायरा ब्लॉक तक सीमित रखा
भ्रष्टाचार के आरोपी को मुयालय में ही अधिकारी बनाकर बिठाने से संभव है कि डर से भी कई गवाह अब बयान देने न आएं। मातहतों की कारस्तानियां छिपाने के लिए कैसे पूरी मशीनरी एकसाथ काम करती है, गरियाबंद से नवा रायपुर तक शिक्षा विभाग के अफसरों ने इसका नायाब नमूना पेश किया है।
खेलगढ़िया फंड में आए पैसों का कैसे इस्तेमाल करना है, इसे लेकर सरकार के स्पष्ट दिशा-निर्देश थे। विभाग ने अधिकारियों को इसकी पीडीएफ फाइल भी मुहैया कराई थी, जिसे वॉट्सऐप ग्रुप के जरिए सभी स्कूलों के प्रधानपाठकों तक पहुंचाया गया था। इस फंड का उद्देश्य छत्तीसगढ़ के पारंपरिक खेलों को बढ़ावा देने के साथ खिलौने बनाने वाले कारीगरों और खेल सामग्रियां बेचने वाले दुकानदारों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना भी था।
कलेक्टर के नेतृत्व में 5 सदस्यीय जांच टीम
khelgarhia Scam: इस तरह खेलगढ़िया के पैसों से स्मार्ट टीवी खरीदकर न केवल बच्चों के खेलने-कूदने का हक मारा गया, बल्कि कारीगरों और दुकानदारों से उनका रोजगार भी छीना गया। खेलगढ़िया घोटाले को 2020 में ही अंजाम दे दिया गया था। शिकायतें 3 साल तक स्थानीय स्तर पर दबी रहीं। 2023 में तत्कालीन गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू तक शिकायत पहुंची, तो उन्होंने कलेक्टर को जांच के निर्देश दिए।
अपर कलेक्टर के नेतृत्व में 5 सदस्यीय जांच टीम बनाई गई। चूंकि यह शिकायत मैनपुर ब्लॉक के एक व्यक्ति ने की थी, इसलिए अफसरों ने जांच का दायरा भी मैनपुर ब्लॉक तक सीमित रखा। जबकि, डीएमसी पूरे जिले के प्रभारी थे। व्यापक स्तर पर गड़बड़ी मिलने के बाद भी अफसरों ने जांच दायरा ब्लॉक तक सीमित रखा। पूरे जिले में जांच नहीं की। जांच का दायरा बढ़े तो अब भी बड़ी गड़बड़ियां उजागर हो सकती हैं।
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