Medical Colleges: सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सीटें हुई फूल, नेशनल मेडिकल कमीशन ने बदला यह नियम

Medical Colleges: कॉलेजों में भी नॉन क्लीनिकल विभागों की आधी सीटें खाली रह जाती थीं। निजी कॉलेजों में छात्रों ने च्वॉइस फिलिंग ही नहीं की। अगर वे च्वॉइस फिलिंग करते तो प्रवेश लेना अनिवार्य हो जाता।

Mar 21, 2025 - 10:03
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Medical Colleges: सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सीटें हुई फूल, नेशनल मेडिकल कमीशन ने बदला यह नियम

Medical Colleges: नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) ने नियम बदला तो सरकारी मेडिकल कॉलेजों में नॉन क्लीनिकल की सभी सीटें पैक हो गईं। वहीं निजी कॉलेजों में 48 सीटें लैप्स हो गई। ये सीटें एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, बायो केमेस्ट्री व फार्माकोलॉजी की हैं। पिछले 13 सालों के ट्रेंड के अनुसार सरकारी कॉलेजों में भी नॉन क्लीनिकल विभागों की आधी सीटें खाली रह जाती थीं। निजी कॉलेजों में छात्रों ने च्वॉइस फिलिंग ही नहीं की। अगर वे च्वॉइस फिलिंग करते तो प्रवेश लेना अनिवार्य हो जाता। एनएमसी ने सीट आवंटन के बाद प्रवेश लेना अनिवार्य कर दिया है। ऐसा नहीं करने पर छात्र नीट पीजी के लिए अपात्र हो जाते। इससे वे पीजी नहीं कर पाते।

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पिछले सालों में नॉन क्लीनिकल विभागों में प्रवेश लेने में छात्रों की रुचि घट गई थी। कोरोनाकाल के पहले तक पीएसएम की सीटें खाली रह रहीं थीं, जो पिछले चार सालों से भर रही हैं। कम्युनिटी बीमारी के विशेषज्ञों की मांग बढ़ने के कारण पीएसएम की सीटें पैक हो रही हैं। मेडिकल एक्सपर्ट के अनुसार नॉन क्लीनिकल में प्राइवेट प्रैक्टिस का खास स्कोप नहीं होता। ऐसे में एमबीबीएस पास डॉक्टर नॉन क्लीनिकल विभागों में एडमिशन लेने से हिचकते हैं।

नॉन क्लीनिकल में एमडी पढ़े डॉक्टर केवल एमबीबीएस पास डॉक्टर की तरह जनरल प्रेक्टिशनर कर मरीजों का इलाज कर सकते हैं। एमबीबीएस के बाद डॉक्टर ऐसे विषयों में एडमिशन लेना नहीं चाहते। जिन्हें टीचिंग का थोड़ा शौक हो, वे जरूर नॉन क्लीनिकल विषय में एडमिशन लेते हैं। प्रदेश में 5 निजी मेडिकल कॉलेज हो गए हैं। कुछ निजी कॉलेज एनाटॉमी के असिस्टेंट प्रोफेसर को 2.10 लाख मासिक वेतन का ऑफर दे रहे हैं। वहीं, अन्य कॉलेजों में 1.60 लाख रुपए वेतन दिया जा रहा है।

क्लीनिकल की 30 लाख व नॉन क्लीनिकल की फीस 24 लाख: क्लीनिकल व नॉन क्लीनिकल की सीटों की फीस में थोड़ा ही अंतर है। फीस विनियामक आयोग ने 2023 में फीस तय की है। निजी कॉलेजों में नॉन क्लीनिकल विषयों की सालाना ट्यूशन फीस 8 लाख है और तीन साल के कोर्स के लिए 24 लाख रुपए है। ऐसे में छात्रों ने थोड़ी और मेहनत कर अच्छे विषय की चाह में च्वाइस फिलिंग ही नहीं की। क्लीनिकल विषयों की फीस 10 लाख रुपए सालाना के हिसाब से पूरे कोर्स की फीस 30 लाख रुपए है।

सरकारी कॉलेजों में 20 हजार सालाना के हिसाब से 60 हजार फीस है। सरकारी व निजी कॉलेजों में छात्रों को हर माह 68 हजार से 75 हजार मासिक स्टायपेंड भी दिया जाता है।

पहली पसंद मेडिसिन व रेडियोलॉजी

इस साल नीट पीजी के टॉप 10 में 6 को जनरल मेडिसिन, 2 को रेडियो डायग्नोसिस, एक को पीडियाट्रिक व एक को डर्मेटोलॉजी की सीट मिली है। यानी टॉपरों की पहली पसंद जनरल मेडिसिन है। दो साल पहले तक स्थिति अलग थी। टॉप 10 में आधे से ज्यादा छात्र रेडियो डायग्नोसिस पसंद करते थे। ऑब्स एंड गायनी, पीडियाट्रिक, पल्मोनरी मेडिसिन जैसे विषय भी पहले राउंड में पसंद किए जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि रेडियो डायग्नोसिस ऐसा विषय है, जिसमें सरकारी नौकरी के साथ आसानी से प्रेक्टिस किया जा सकता है। मेडिसिन भी ऐसा ही विषय है।

इस साल नॉन क्लीनिकल विभागों की सीटें भर गई हैं, क्योंकि सीट अलॉटमेंट के बाद प्रवेश अनिवार्य था। ऐसा नहीं करने पर छात्र नीट पीजी के लिए डिबार हो जाते। यही कारण है कि एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, बायो केमेस्ट्री की स्टेट व ऑल इंडिया की सीटें पूरी तरह भर गईं।

डॉ. यूएस पैकरा, डीएमई छत्तीसगढ़

नॉन क्लीनिकल विभागों की सीटें नहीं भरी हैं। दरअसल, छात्र ऐसे विषयों में प्रवेश लेना चाहते हैं, जिसमें प्राइवेट प्रेक्टिस का ऑप्शन ज्यादा हो। च्वॉइस फिलिंग करते तो सीटों का आवंटन होता और प्रवेश लेना अनिवार्य होता। ऐसे में छात्रों ने च्वॉइस फिलिंग ही नहीं की।

डॉ. देवेंद्र नायक, चेयरमैन, बालाजी मेडिकल कॉलेज

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