प्रसंगवश: झूम कर बरसने वाले बदरा को व्यर्थ बहने ना दें, संरक्षित करें

मानसून के छत्तीसगढ़ में दस्तक के बीच कोरिया से एक अच्छी खबर सामने आई है, जिसका अनुसरण किया जाना चाहिए

May 30, 2025 - 09:13
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प्रसंगवश: झूम कर बरसने वाले बदरा को व्यर्थ बहने ना दें, संरक्षित करें

बादल गरजे, बूंदें आईं, खुश है धरती थोड़ी-थोड़ी। क्यूं पानी बहने देकर, बूंद बूंद है हमने छोड़ी। कहां मिलेगी ऐसी खुशबू, फिर से हमको सौंधी सौंधी। अब तो आवा पानी झोंकी। छत पे गिरता, गली में बहता, नालों से फिर नदी में जाता। हम सबके कुछ काम न आता। धरती कहे पुकार के भैया, एका रोकी.. एका रोकी.. एका रोकी। अब तो आवा पानी झोंकी।

इन पंक्तियों को चरितार्थ किया है छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के लोगों ने। प्रदेश में मानसून की दस्तक के बीच 29 मई को कोरिया में जल संरक्षण के लिए ऐसा कार्य किया कि वह गोल्डन बुक ऑफ वल्र्ड रेकॉर्ड में दर्ज हो गया। यहां की 165 ग्राम पंचायतों और 3 नगरीय निकायों ने 3 घंटे में 660 सोख्ता गड्ढों का निर्माण किया।

सोख्ता गड्ढे यानी कि सोकपिट या लीचपिट जमीन में बने गड्ढे होते हैं। सोख्ता गड्ढे जल संचयन और भूजल स्तर को बढ़ाने के लिए बनाए जाते हैं। इनका निर्माण बहुत आसानी से किया जा सकता है। करीबन एक मीटर गहरा गड्ढा खोदना होता है, जिसे पत्थर या ईंट के टुकड़ों से भरा जाता है। इस गड्ढे को ऐसे ढक्कन से ढक दिया जाता है, जिसमें छोटे-छोटे छेद होते हैं। इन छेदों से बारिश का पानी या व्यर्थ बहते जल को जमीन में पहुंचाया जाता है। इसके माध्यम से गिरते भूजल स्तर को काफी हद तक रोका जा सकता है।

कोरिया जिले में यह कार्य पूरी तरह से जन सहयोग से किया गया। इसे हमें सिर्फ एक रेकॉर्ड बनाने का कार्य नहीं समझना चाहिए। यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि इस मायने में है कि कोरिया जिले के लोगों ने इस मानसून में बारिश के पानी को व्यर्थ बहने से बचाने की दिशा में बड़ा कार्य कर लिया है। विशेषज्ञों के मुताबिक आज बनाए गए 660 सोख्ता गड्ढों में 60 तालाबों के बराबर जल संचयन की क्षमता विकसित हो गई है।

जल प्रबंधन और संरक्षण के लिए किए गए इस कार्य को पूरे प्रदेश में किया जाना चाहिए। इसके लिए सरकार का मुंह नहीं ताकना चाहिए, क्योंकि सोख्ता गड्ढों का निर्माण आप और हम स्वयं कर सकते हैं। इसमें ज्यादा खर्च भी नहीं आएगा। तो आइए हम संकल्प लें कि इस मानसून में हम वर्षा जल को व्यर्थ बहने नहीं देंगे और अपने कल को संरक्षित करेंगे। – अनुपम राजीव राजवैद्य anupam.rajiv@epatrika.com

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