बिलासपुर में KCC और खाद के लिए किसान परेशान:खेती पिछड़ने से चिंतित और परेशान हैं अन्नदाता, प्रशासन का दावा जिले में खाद की कमी नहीं
बिलासपुर में प्रशासन का दावा है कि खाद की कमी है। लेकिन, जिले के किसान लगातार अपनी समस्या लेकर कलेक्ट्रेट परिसर में भटकते नजर आ रहे हैं। गुरुवार को सेवा सहकारी समिति गोड़ाडीह व आसपास के किसान KCC नहीं बनाने और खाद की कमी की कमी की समस्या को लेकर भटकते नजर आए। उन्हें चिंता इस बात की भी है कि खेती का काम जोरों पर हैं। ऐसे में खाद नहीं मिलने पर फसल की पैदावार पर असर पड़ सकता है। प्रशासन का दावा, जिले में खाद की कमी नहीं
कुछ दिन पहले जिला प्रशासन ने दावा किया था कि जिले में किसानों को आवश्यक बीज एवं रासायनिक उर्वरक की उपलब्धता और वितरण की प्रक्रिया तेजी से पूरी की जा रही है। कृषि विभाग के उप संचालक ने बताया कि बीज वितरण कार्य लगभग पूर्णता की ओर है, जबकि उर्वरक खाद वितरण भी तेजी से चल रही है। बताया गया कि खरीफ सीजन 2025 के लिए जिले में अब 21,986 क्विंटल खरीफ फसलों के बीज वितरण का लक्ष्य है, जिसमें19464 क्विंटल बीज का सफल वितरण किया जा चुका है, जो कुल उपलब्ध बीज का 92.77 प्रतिशत होता है। वहीं, जिले में किसानों को सहकारी समितियों के माध्यम से रासायनिक उर्वरक भी लगातार वितरित किए जा रहे हैं। कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार अब तक जिले में 28,263 मीट्रिक टन उर्वरक का भंडारण किया गया है जिसमें से 22,397 मीट्रिक टन का वितरण किया जा चुका है। फिर क्यों परेशान हैं किसान, जिला मुख्यालय का काट रहे चक्कर
जिला प्रशासन के इन दावों के बीच जिले के किसान जिला मुख्यालय और सहकारी बैंक का चक्कर काटकर परेशान हैं। किसानों का कहना है कि वे कई बार समिति कार्यालय के चक्कर लगा चुके हैं। लेकिन अब तक उन्हें न तो KCC की मंजूरी मिली है और न ही खाद उपलब्ध कराई जा रही है। मानसून के सीजन में खेती के लिए खाद और ऋण दोनों ही जरूरी है। ताकि वो खेत में लागत के साथ अपनी मेहनत का पसीना बहा सके। बिना जरूरी संसाधन के उनकी मेहनत बेकार हो जाएगी। लेकिन, अफसरशाही और लापरवाही के चलते उन्हें बार-बार निराश होकर लौटना पड़ रहा है। रोज कलेक्ट्रेट पहुंच रहे किसान
किसानों की यह समस्या अब धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। किसान संगठनों ने प्रशासन से जल्द समाधान की मांग की है। यदि समय रहते कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो आगामी फसल सत्र पर इसका गंभीर असर पड़ सकता है। स्थानीय प्रशासन की चुप्पी भी किसानों की चिंता बढ़ा रही है। ऐसे में किसान अपने खेत में काम करने के बजाए कलेक्ट्रेट का चक्कर काटने के लिए मजबूर हैं।
बिलासपुर में प्रशासन का दावा है कि खाद की कमी है। लेकिन, जिले के किसान लगातार अपनी समस्या लेकर कलेक्ट्रेट परिसर में भटकते नजर आ रहे हैं। गुरुवार को सेवा सहकारी समिति गोड़ाडीह व आसपास के किसान KCC नहीं बनाने और खाद की कमी की कमी की समस्या को लेकर भटकते नजर आए। उन्हें चिंता इस बात की भी है कि खेती का काम जोरों पर हैं। ऐसे में खाद नहीं मिलने पर फसल की पैदावार पर असर पड़ सकता है। प्रशासन का दावा, जिले में खाद की कमी नहीं
कुछ दिन पहले जिला प्रशासन ने दावा किया था कि जिले में किसानों को आवश्यक बीज एवं रासायनिक उर्वरक की उपलब्धता और वितरण की प्रक्रिया तेजी से पूरी की जा रही है। कृषि विभाग के उप संचालक ने बताया कि बीज वितरण कार्य लगभग पूर्णता की ओर है, जबकि उर्वरक खाद वितरण भी तेजी से चल रही है। बताया गया कि खरीफ सीजन 2025 के लिए जिले में अब 21,986 क्विंटल खरीफ फसलों के बीज वितरण का लक्ष्य है, जिसमें19464 क्विंटल बीज का सफल वितरण किया जा चुका है, जो कुल उपलब्ध बीज का 92.77 प्रतिशत होता है। वहीं, जिले में किसानों को सहकारी समितियों के माध्यम से रासायनिक उर्वरक भी लगातार वितरित किए जा रहे हैं। कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार अब तक जिले में 28,263 मीट्रिक टन उर्वरक का भंडारण किया गया है जिसमें से 22,397 मीट्रिक टन का वितरण किया जा चुका है। फिर क्यों परेशान हैं किसान, जिला मुख्यालय का काट रहे चक्कर
जिला प्रशासन के इन दावों के बीच जिले के किसान जिला मुख्यालय और सहकारी बैंक का चक्कर काटकर परेशान हैं। किसानों का कहना है कि वे कई बार समिति कार्यालय के चक्कर लगा चुके हैं। लेकिन अब तक उन्हें न तो KCC की मंजूरी मिली है और न ही खाद उपलब्ध कराई जा रही है। मानसून के सीजन में खेती के लिए खाद और ऋण दोनों ही जरूरी है। ताकि वो खेत में लागत के साथ अपनी मेहनत का पसीना बहा सके। बिना जरूरी संसाधन के उनकी मेहनत बेकार हो जाएगी। लेकिन, अफसरशाही और लापरवाही के चलते उन्हें बार-बार निराश होकर लौटना पड़ रहा है। रोज कलेक्ट्रेट पहुंच रहे किसान
किसानों की यह समस्या अब धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। किसान संगठनों ने प्रशासन से जल्द समाधान की मांग की है। यदि समय रहते कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो आगामी फसल सत्र पर इसका गंभीर असर पड़ सकता है। स्थानीय प्रशासन की चुप्पी भी किसानों की चिंता बढ़ा रही है। ऐसे में किसान अपने खेत में काम करने के बजाए कलेक्ट्रेट का चक्कर काटने के लिए मजबूर हैं।