बस्तर दशहरा की खास रस्म… महाअष्टमी पर राजपरिवार ने निभाई सदियों पुरानी निशा जात्रा परंपरा
Bastar Dussehra: 12 गांवों से राउत माता के लिए 12 पात्रों में भोग अर्पित कर सदियों पुरानी परंपरा निभाई गई। निशा जात्रा में श्रद्धालु जुटे और राज्य की रक्षा हेतु विशेष अनुष्ठान हुआ।
Bastar Dussehra: बस्तर दशहरा की हर एक रस्म खास है, लेकिन महाअष्टमी को देर रात होने वाली निशा जात्रा की रस्म बेहद खास है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस पूजन में राज परिवार के सदस्य राज्य की रक्षा के लिए विशेष तंत्र अनुष्ठान करते हैं। अनुपमा चौक स्थित माता खमेश्वरी की गुड़ी में निशा जात्रा की रस्म निभाई जाती है। मंगलवार देर रात 12 बजे के बाद यहां खास पूजा शुरू हुई। इसमें बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव ने अनुष्ठान की रस्मे पूरी की।
Bastar Dussehra: परंपरा पिछले 617 साल से चली आ रही
बस्तर राज परिवार के राजगुरु ने पूजा करवाई। इस दौरान 12 गांव के राउत अपने साथ 12 मटकों में माता के लिए विशेष भोग लेकर आए। साथ ही 11 बकरों की बलि भी दी गई। इस खास पूजा की परंपरा पिछले 617 साल से चली आ रही है। तब से यहां इसी तरह से पूजा होती है।
मान्यता है कि बुरी प्रेत आत्माओं से राज्य की रक्षा करने देवी से कामना की जाती है। निशा जात्रा में कमलचंद्र भंजदेव के अलावा भाजपा के क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल, मंत्री केदार कश्यप, महापौर संजय पांडेय समेेत तमाम जनप्रतिनिधि व अधिकारीगण मौजूद थे।
निशा जात्रा का यह है महत्व
राज्य की रक्षा: इस रस्म का मुख्य उद्देश्य बुरी प्रेत-आत्माओं से राज्य और प्रजा की रक्षा करना है।
देवी को प्रसन्न करना: बलि और भोग अर्पित कर देवी को प्रसन्न किया जाता है ताकि वह राज्य की रक्षा कर सके।
शांति और समृद्धि: यह अनुष्ठान राज्य में शांति और सुख-समृद्धि बनाए रखने में सहायक माना जाता है।
ऐतिहासिकता: 1301 ईस्वी से शुरू हुई यह परंपरा बस्तर दशहरा के इतिहास का एक महत्वपूर्ण और अनूठा हिस्सा है।
इन गांवों के लोगों ने तैयार किया भोग
Bastar Dussehra: निशा जात्रा पूजा के लिए भोग प्रसाद तैयार करने का जिम्मा राजुर, नैनपुर, रायकोट आदि गांव के राउत का होता है। इस समुदाय के लोग ही भोग प्रसाद कई सालों से माता खमेश्वरी को अर्पित कर रहे हैं। निशा जात्रा कि यह रस्म बस्तर के इतिहास में बहुत ह़ी महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
भोग में चावल, खीर, उड़द की दाल और उड़द से बने बड़े शामिल होते हैं। भोग और हंडियों के नाश की भी प्रक्रिया है। पूजा के बाद भोग और खाली हंडियों को तोड़ दिया जाता है ताकि उनका दुरुपयोग न हो सके।
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