Toilet In School: छत्तीसगढ़ के करीब 4070 स्कूलों में गर्ल्स टॉयलेट ही नहीं! अब बेटियां भी ले सकती हैं कोर्ट का सहारा, जानें कैसे?

Raipur News: आसमां को बुलंद करने वाले हाथों को यूूं मायूस न कर, ये वो धरा है जो समुंदर को भी डरा दे… आज स्थिति भी कुछ ऐसी है जहां कुलों को तारने वाली बेटियों को सरकारी व्यवस्थाओं के आगे मायूस होना पड़ता है।

Jan 26, 2025 - 10:45
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Toilet In School: छत्तीसगढ़ के करीब 4070 स्कूलों में गर्ल्स टॉयलेट ही नहीं! अब बेटियां भी ले सकती हैं कोर्ट का सहारा, जानें कैसे?

Toilet In School: आसमां को बुलंद करने वाले हाथों को यूूं मायूस न कर, ये वो धरा है जो समुंदर को भी डरा दे… आज स्थिति भी कुछ ऐसी है जहां कुलों को तारने वाली बेटियों को सरकारी व्यवस्थाओं के आगे मायूस होना पड़ता है। छत्तीसगढ़ के करीब 4070 स्कूलों में बेटियों के लिए टॉयलेट सुुविधा ही नहीं हैं।

कई स्कूलों में व्यवस्था न होने से उन्हें कभी जंगल में तो कभी 500 मीटर दूर घर या आसपास जाना पड़ता हैं। इस मुद्दे को लेकर पत्रिका ने बुद्धजीवियों व एक्सपर्ट की प्रतिक्रिया जानी। सभी का कहना है कि इसके लिए सरकार और तंत्र को जितनी जल्दी हो सके, प्रयास करना चाहिए। संविधान ने भी अधिकार दिए हैं, जिसके पालन के लिए सुप्रीम कोर्ट ने भी आदेश भी दिए हैं कि स्कूलों में टॉयलेट की व्यवस्था होनी ही चाहिए। विद्यार्थी चाहें तो कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा सकते हैं।

बच्चों में आती है डर और संकोच की भावना

स्कूल में टॉयलेट न होना, छात्राओं की मानिसक स्थिति को भी प्रभावित करता है। सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी स्कूलों में टॉयलेट, हैंडवॉश, पीन के पानी जैसी सुविधाएं हों। छात्राएं स्कूल में 5-6 घंटे के लिए होती हैं। इस दौरान ज्यादा समय तक वे स्थिति को कंट्रोल करतीं हैं तो इसका प्रभाव उनके शरीर पर भी पड़ता है।

सबसे ज्यादा समस्या लड़कियों को मासिक धर्म के समय होती हैं। वहीं, जब लड़कियां स्कूल से बाहर जाती है तो भी उनके मन में असुरक्षा के भाव होते हैं, वो भी मानसिक स्थिति के लिए ठीक नहीं है। इसके कारण कई लड़कियां स्कूल छोड़ देती है। वहीं, डर और संकोच की भावना आती है। जो भविष्य के लिए सही नहीं हैं। – डॉ. मीता झा, साइकोलॉजिस्ट

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व्यवस्था की यह कमजोरी अक्षय है

किसी भी संस्थान में टॉयलेट जैसी मुलभूत सुविधाएं अनिवार्य होनी ही चाहिए। यदि राज्य में 4070 स्कूलों में टॉयलेट नहीं है तो यह सरकारों और व्यवस्था की कमजोरी है। मेरा मानना है कि सरकार शिक्षाविदों की टीम बनाए और उनकी अनुशंसा पर कार्य करे। स्कूलों की व्यवस्था को सुधारने के लिए सरकार को प्रमुखता से कार्य करना चाहिए। – दानीराम वर्मा, दानी गर्ल्स स्कूल के पूर्व प्रिंसिपल

स्कूल में हो सभी सुविधाएं

स्कूल में बच्चों के लिए सभी सुविधाएं होनी ही चाहिए। गवर्नमेंट स्कूलों में क्लासरूम, टॉयलेट जैसे मूलभूत सुविधाओं का ध्यान रखना सरकार का काम है, लेकिन सरकारें इन्हें एक बार बनवाने के बाद भूल जाती है। स्कूलों में लगातार निरीक्षण और मेंटनेंस का जिमा अधिकारियों का भी होता है, वो नहीं हो पाता। हमारी रॉयल राउंड टेबल 317 स्कूलों में क्लारूम और टॉयलेट जैसी बेसिक जरूरतों को पूरा करने में मदद का काम करती हैं।

गवर्नमेंट को जिस काम को शुरू और पूरा करने में सालों लग जाते हैं, उसे हम कुछ माह में ही कर देते हैं। पिछले पांच साल में संस्था 50 से ज्यादा स्कूलों में क्लासरूम, टॉयलेट, ग्राउंड जैसे कंस्ट्रक्शन करा चुकी है। हमारा टारगेट हर साल 10 स्कूल का होता है। इसके लिए राउंड टेबल इंडिया से भी फंड आती है। हम भी फंड रेजिंग इवेंट करते हैं। – दिव्यम अग्रवाल, वाइस प्रेसिडेंट, रॉयल राउंड टेबल 317

अधिकार नहीं मिल रहे तो जा सकते है कोर्ट

संविधान के अनुच्छेद 21 अनुसार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार माना गया है। सन 2002 में 86वां संविधान संशोधन किया गया और अनुच्छेद 21ए जोड़ा गया। जिसमें 6 से 14 साल के बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का मौलिक अधिकार दिया गया। मौलिक अधिकार की विशेषता यह है कि उसके हनन होने पर उसकी पालना के लिए वो हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में रीट याचिका दायर कर सकता है।

वहीं, ‘‘निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009’’ जिसे राइट टू एजुकेशन कहते हैं। इस अधिनियम के शेड्यूल के आइटम में स्पष्ट और आज्ञापक प्रावधान है कि सभी स्कूलों में लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग टॉयलेट होना अनिवार्य है। इसमें कहा गया है कि एक यूनिट में एक टॉयलेट और तीन यूरिनल होना चाहिए। जो कि लगभग 40 छात्रों में एक यूनिट होना ही चाहिए। – सिध्दार्थ तिवारी, एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट

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