Bastar Heritage: आभूषणों में छिपा है संस्कृति का गौरव, बस्तर की विरासत को देखने पहुंच रहे विदेशी पर्यटक भी
Bastar Heritage: विदेशी दंपत्ति एलेक्स और हैरिएट ने बस्तर की पारंपरिक आभूषण कला को सहेजने की पहल की। सुरूज ट्रस्ट के तहत स्थानीय युवाओं को गोंड आभूषण निर्माण का प्रशिक्षण।
Bastar Heritage: आधुनिकता के दौर में जहां बस्तर की परंपराएं और लोककला धीरे-धीरे लुप्त हो रही हैं, वहीं विदेशी मेहमान इन्हें सहेजने का प्रयास कर रहे हैं। ब्रिटिश दंपत्ति एलेक्स और हैरिएट ने बस्तर की आभूषण कला और आदिवासी संस्कृति से प्रभावित होकर इसे पुनर्जीवित करने की मुहिम शुरू की है।
सूरूज ट्रस्ट के बैनर तले आयोजित कार्यशाला में स्थानीय युवाओं को पारंपरिक गोंड आभूषण दोगा माला, कारिया माला, मूंद माला, पिजाड़ा और रूपया माला बनाने की बारीकियाँ सिखाई जा रही हैं। इस पहल में उन्हें सहयोग दे रहे हैं हैलो बस्तर के अनिल लुंकड़, हॉलिडेज़ इन रूरल इंडिया की सोफी हार्टमैन और बस्तर ट्राइबल होमस्टे के शकील रिज़वी।
स्वरोजगार में सहायक: गुड़ियापदर में सुकमा से विस्थापित गोंड समुदाय के आदिवासियों के बीच इस कला को सहेजना, परंपरा से जोड़ना और युवाओं में आत्मनिर्भरता की भावना जगाने का कार्य किया जा रहा है। सूरूज ट्रस्ट की यह पहल न सिर्फ संस्कृति को जीवित रख रही है, बल्कि बस्तर को अंतरराष्ट्रीय पहचान के साथ युवाओं को स्वरोजगार में भी सहायक साबित होगा है।
Bastar Heritage: सूरूज ट्रस्ट की संस्थापक दिप्ति ओगरे ने बताया कि ‘दोगा माला’, ‘कारिया माला’, ‘मूंद माला’, ‘पिजाड़ा’ और ‘रूपया माला’ ये सिर्फ गहने नहीं, बल्कि गोंड समाज की सामाजिक पहचान और सामुदायिक एकता का प्रतीक हैं। कार्यशाला में बस्तर के अनुभवी शिल्पकार 30 से अधिक युवाओं को पारंपरिक तकनीक सिखा रहे हैं ताकि यह कला पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित रह सके।
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