राज्य पुरस्कार विजेता...लौह शिल्पी तातीराम की कहानी:फटी धोती में गुजर रही जिंदगी, इलाज के लिए पैसे नहीं; सरकार से मदद की आस
छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में रहने वाले राज्य पुरस्कार विजेता लौह हस्तशिल्पी तातीराम विश्वकर्मा आज बीमारी और गरीबी से जूझ रहे हैं। वे ग्राम किड़ईछेपड़ा में अपनी पत्नी और चार बच्चों के साथ एक झोपड़ी में रहते हैं। तातीराम विलुप्त हो रही लौह शिल्प की परंपरागत तकनीक 'लुहा घाना' के अंतिम जीवित कलाकारों में से एक हैं। उनकी कला को छत्तीसगढ़ के पूर्व राज्यपाल के.एम. सेठ ने भी सराहा है। उन्होंने अपनी कला से न केवल देश बल्कि विदेशों में भी पहचान बनाई है। हालांकि, आज वही कलाकार अपना इलाज तक नहीं करवा पा रहे हैं। उनका परिवार किसी की मदद की उम्मीद में है। इससे पहले भी कोंडागांव के कई प्रतिष्ठित शिल्पी जैसे सुखचंद पोयाम, सुन्हेर नेताम, मिरीलाल विश्वकर्मा और जगन्नाथ कोर्राम समय पर इलाज न मिलने के कारण काल के गाल में समा गए। शिल्पकारों की उपेक्षा... कोंडागांव को सांस्कृतिक नगरी के रूप में जाना जाता है। यहां का हस्तशिल्प पर्यटन विकास और रोजगार का प्रमुख स्रोत है। ऐसे में शिल्पकारों की उपेक्षा न केवल मानवीय दृष्टि से गलत है, बल्कि क्षेत्र के विकास में भी बाधक है। प्रशासन से मांगी मदद तातीराम के परिवार ने प्रशासन और सांस्कृतिक संस्थानों से तत्काल सहायता की मांग की है। साथ ही इस कला के संरक्षण के लिए दीर्घकालिक योजना बनाने की भी आवश्यकता है। अगर समय रहते इन कलाकारों को सहयोग नहीं मिला, तो यह अनमोल विरासत सिर्फ किताबों तक ही सीमित रह जाएगी।
छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में रहने वाले राज्य पुरस्कार विजेता लौह हस्तशिल्पी तातीराम विश्वकर्मा आज बीमारी और गरीबी से जूझ रहे हैं। वे ग्राम किड़ईछेपड़ा में अपनी पत्नी और चार बच्चों के साथ एक झोपड़ी में रहते हैं। तातीराम विलुप्त हो रही लौह शिल्प की परंपरागत तकनीक 'लुहा घाना' के अंतिम जीवित कलाकारों में से एक हैं। उनकी कला को छत्तीसगढ़ के पूर्व राज्यपाल के.एम. सेठ ने भी सराहा है। उन्होंने अपनी कला से न केवल देश बल्कि विदेशों में भी पहचान बनाई है। हालांकि, आज वही कलाकार अपना इलाज तक नहीं करवा पा रहे हैं। उनका परिवार किसी की मदद की उम्मीद में है। इससे पहले भी कोंडागांव के कई प्रतिष्ठित शिल्पी जैसे सुखचंद पोयाम, सुन्हेर नेताम, मिरीलाल विश्वकर्मा और जगन्नाथ कोर्राम समय पर इलाज न मिलने के कारण काल के गाल में समा गए। शिल्पकारों की उपेक्षा... कोंडागांव को सांस्कृतिक नगरी के रूप में जाना जाता है। यहां का हस्तशिल्प पर्यटन विकास और रोजगार का प्रमुख स्रोत है। ऐसे में शिल्पकारों की उपेक्षा न केवल मानवीय दृष्टि से गलत है, बल्कि क्षेत्र के विकास में भी बाधक है। प्रशासन से मांगी मदद तातीराम के परिवार ने प्रशासन और सांस्कृतिक संस्थानों से तत्काल सहायता की मांग की है। साथ ही इस कला के संरक्षण के लिए दीर्घकालिक योजना बनाने की भी आवश्यकता है। अगर समय रहते इन कलाकारों को सहयोग नहीं मिला, तो यह अनमोल विरासत सिर्फ किताबों तक ही सीमित रह जाएगी।